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भारत की पवित्र नदी गंगा का विहंगम दृश्य चुनार के क़िले से |
चुनार भारत का एक
ऐतिहासिक धरोहर स्थल है। यह धार्मिक नगर वाराणसी से महज़ 39 किमी० की दूरी पर बसा हुआ है। चुनार, मीरजापुर जिले की एक तहसील है। चुनार रेलवे स्टेशन भारत के अन्य प्रमुख रेलवे स्टेशनों से
भली-भाँति जुड़ा हुआ है अतः यहाँ की यात्रा पर आने के लिए भारतीय रेलवे भी
एक सुखद विकल्प है। यह नगर विंध्याचल पर्वत श्रेणियों पर स्थित है। ये
पर्वत श्रेणियाँ अवसादी चट्टान से निर्मित है, जो बलुआ पत्थर का विशाल
जख़ीरा रखती है। चुनार अपनी चीनी मिट्टी की कलाकृतियों के कारण विश्व
विख्यात नगर है। मिट्टी की प्रकृति का अध्ययन चुनार में बखूबी किया जा
सकता है जहाँ एक ओर मिट्टी को पकाने पर वह लाल हो जाती है वहीं दूसरी ओर
चुनार में पायी जाने वाली चीनी मिट्टी को पकाने पर, वह पककर सफेद हो जाती
है। चीनी मिट्टी की यही प्रकृति चुनार ग्रामीण निवासियों के लिए एक वरदान
सिद्ध हुई है जो आज सैकड़ों चुनार वासियों को रोजगार देती है। चुनार आने
वाले सैलानी इन चीनी मिट्टी से निर्मित बरतन, खिलौनें, साज-सज्जा के सामान,
घरेलू उपकरण आदि विभिन्न कलाकृतियों को अपने साथ यहाँ की यादगार वस्तु के
रूप में ले जाते हैं। यहाँ पर भगवान श्री गणेश और धन की देवी लक्ष्मी की
मूर्तियों का निर्माण ग्रामीण वासी, व्यवसाय के रुप में करते है । यह
मूर्तियाँ प्लास्टर आफ पेरिस को साँचे में ढाल कर बनायी जाती है, फिर इन
पर रंगीन कलाकारी की जाती है। यहाँ साल के 365 दिन मूर्ति निर्माण का काम
होता है तथा इन निर्मित मूर्तियों को हिन्दुओं के दीपावली त्योहार के दौरान
भारत के विभिन्न स्थानों से थोक दुकानदार यहाँ आते हैं और यहाँ की निर्मित
मूर्तियों को खरीद कर ले जाते है, फिर इन्हें स्थानीय बाजारों में बेचा
जाता है।
इस नगर की नगरी भाषा हिन्दी है किन्तु ग्रामीण क्षेत्र में
भोजपुरी युक्त हिन्दी भाषा सुनने को मिलती है। चुनार अपने अतीत के इतिहास
के लिए विश्व विख्यात है। समुद्र तल से 85 मीटर की खड़ी ढाल युक्त पहाड़ के
ऊपर खड़ा चुनार का क़िला अपने में ही एक अलग इतिहास एवं पहचान रखता है। यह
क़िला भारत की पवित्र नदी गंगा से दो ओर से घिरा है, जो इस क़िले को अतीत में
विद्रोही आक्रमणों से सुरक्षा प्रदान करती थी। दुर्ग की बुर्ज से अनेक
प्राकृतिक दृश्यों तथा पतित पावनी गंगा नदी के विस्तृत फैलाव को देखा जा
सकता है। यहाँ आने वाले पर्यटक इन दृश्यों से रूबरू होकर सुखद एवं शान्ति
का अनुभव करते है। इस क़िले की खासियत यह है कि समुद्र तल से 85 मीटर की
ऊँचाई पर स्थित होने के कारण इस क़िले को शहर के कोने -कोने से देखा जा सकता
है। चुनार के क़िले का निर्माण 2000 वर्ष पूर्व उज्जैन के राजा
विक्रमादित्य ने करवाया था। क़िले में भर्तृहरि का जीवान्त समाधि स्थल बना
हुआ है, जिस पर भर्तृहरि मन्दिर बना दिया गया है। भर्तृहरि संस्कृत भाषा के
महान विद्वान थे ।
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क़िले की स्थापत्यकला |
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अरवा |
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क़िला |
भर्तृहरि राजा विक्रमादित्य के बड़े भाई थे। भर्तृहरि
अपना वैरागी जीवन जीने इस चरणाद्रि पर्वत पर सर्वप्रथम आए। जहाँ आज चुनार
का सीना ताने खड़ा है तथा क़िले के विशाल बुर्ज, चुनार नगर को अपनी
तीक्ष्ण निगाहों से निहार रहा है। इस मंदिर में औरंगजेब द्वारा फारसी लिपि
में लिखित एक घोषणापत्र प्राचीन अभिलेख के रूप में आज भी सुरक्षित है। इस
अभिलेख की भाषा फारसी है। क़िले की स्थापत्यकला पूर्णतया भारतीय स्थापत्यकला
शैली पर आधारित है जो इस दुर्ग की भव्यता पर चार चांद लगाती है। क़िले का
निर्माण बलुआ पत्थर से कराया गया था। यहाँ की दीवारों पर की गयी बारीक
नक्काशी अद्भुत तथा मनमोह ले ने वाली है। अरवा पर की गयी बेमिसाल एवं
बेजोड़ नक्काशी बेहद खूबसूरत है, जो इसे भारत में स्थित अन्य अरवा
वास्तुकलाओं में अलग पहचान देती है। दुर्ग पर एक बावड़ी है, जो 200मीटर गहरी
है जिस तक पहुंचने के लिए सुरंग का सहारा लेना पड़ता है।
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सुरंगि मार्ग |
इस सुरंग में
पत्थरों से निर्मित सीढ़ियाँ है जो बावड़ी तक जाती है। यह सुरंगि मार्ग जगह
-जगह मेहराबों द्वारा अलंकृत है। यह मेहराब सुरंगि मार्ग की छत को सहारा
देते हुए देखे जा सकते हैं। क़िले में स्थित मण्डप तथा फाँसी गृह स्थल
अद्भुत है।
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चुनार का क़िला |
दुर्ग का अधिकांश हिस्सा आज अपने अस्तित्व को बचाने की जह्दोजहद
में लगा हुआ है। ब्रिटिश शासन के समय दुर्ग के कुछ भवनों को राजकीय
कारागार में परिवर्तित कर दिया गया। यह राजकीय कारागार आज भी अपने इतिहास
को संजोए खड़ा है। क़िले पर स्थित शैल अभिलेखों का अध्ययन करने से यह तथ्य
सामने आते हैं कि इस क़िलें पर 17 अलग - अलग राजाओं ने प्रभुत्व स्थापित
किया था। यह राजा मुख्यत: लोदी,सूर, मुग़ल एवं अवध राजवंशों के थे। अफगान
सरदार शेरशाह सूरी तथा मुग़ल बादशाह हुमायूं के बीच सन् 1538 ईसवीं में
चुनार युद्ध हुआ। जिसमे शेरशाह सूरी पराजित हुआ और शेरशाह सूरी की इस पराजय
के साथ चुनार के किले का प्रभुत्व हुमायूं के हाथ में आ गया परन्तु सन्
1540 ईसवी में हुए कन्नौज के युद्ध में हुमायूं की हार के बाद अफगान सरदार
शेरशाह सूरी ने पुन: चुनार के किले पर अधिकार कर लिया। अफगानी शेरशाह सूरी
के बाद सालों- साल बादशाह अकबर का आधिपत्य इस दुर्ग में रहा। मुग़ल वंश के
अन्तिम शासकों के अयोग्य होने के कारण, इस दुर्ग पर अवध के नवाब अपना
साम्राज्य विस्तार करने में सफल हो गए।
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'वारेन हेस्टिंग्स बंगला' की वास्तुकला शैली |
18वीं शताब्दी के अन्त तक यह क़िला
ब्रिटिश हुकूमत के कब्जे मे आ गया इसप्रकार इस दुर्ग में ब्रिटिश ईस्ट
इण्डिया कम्पनी का आधिपत्य हो गया। आधिपत्य होने के साथ ही दुर्ग पर
ब्रिटिश वास्तुकला शैली युक्त भवन का निर्माण अंग्रेजों द्वारा कराया गया।
यह भवन आज भी उसी शान- शौक से खड़ा हुआ है। यह भवन भारत के तत्कालीन गवर्नर
जरनल वारेन हेस्टिंग्स का निवास स्थान बना इसी के कारण यह भवन बाद में
'वारेन हेस्टिंग्स बंगला' के नाम से जाना जाने लगा। यह क़िला उत्तर प्रदेश
राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षण प्राप्त है। चुनार का माँ दुर्गा गुफा
मंदिर, यहाँ का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। यह पहाड़ी मंदिर है जो
विंध्याचल पर्वत श्रेणियों पर स्थित है।
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औरंगजेब द्वारा फारसी लिपि
में लिखित घोषणापत्र |
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धन्यवाद
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